भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास

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1. भू राजस्व पद्धति2. कृषि का वाणिज्यिकरण3. भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का  विनाश  4. भारतीय भारतीय धन का निष्कासन5. भारत में रेलवे का विकास6. भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास

7. भारत में अकाल[vvi]

भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास 


औद्योगिक विकास हेतु आवश्यक शर्त जो निम्न हैं जैसे:-

 प्राकृतिक संसाधन, पूंजी ,उद्यमशीलता, श्रम, तकनिकी ,सरकार की संरक्षण, यातायात संचार, बाजार, संस्कृति और समाज का स्वरुप 

आधुनिक उद्योग में पूंजी निवेश 

इसमें दो प्रकार का निवेश किया गया था, जैसे:- ब्रिटिश पूंजी और भारतीय पूंजी 
ब्रिटिश पूंजी                                                              
  • जुट                                                                         
  • बागान ;- [नील चाय कॉफी]                                     
  • खनन      
  •  रेलवे     
  भारतीय पूंजी 

  •  कपड़ा 
  •   लोह इस्पात 

आधुनिक उद्योग के विकास का चरण 

1)1850-1914   2)1914-1947 

आधुनिक उद्योग के पूर्ण विकास क्यों नहीं 


ब्रिटिश इतिहासकार और भारतीय इतिहासकार का कथन पर चर्चा करेंगे

1.भारत में आधुनिक


  • उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी आर्थिक नीतियां ने भारत के परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग को नष्ट कर दिया परंतु उसके स्थान पर किसी नवीन औद्योगिक विकास की प्रक्रिया को प्रोत्साहन नहीं किया जैसा कि ब्रिटेन में किया था फिर 1850 के दशक से भारत में भी औद्योगिक की प्रक्रिया धीमी गति से ही सही शुरू हो गई इस दौर में जूट बगान खाना रेलवे एवं वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में  विकास दृष्टिगोचर होने लगता है लेकिन वस्त्र उद्योग को छोड़कर इन सभी उद्योग में ब्रिटिश पूंजी पतियों का स्वामित्व वर्चस्व या एकाधिकार था पहले 1854 में रिशरा[ बंगाल] जॉर्ज आकलैंड ने एक जूट का कारखाना स्थापना किया 1854 मुंबई में कवास जी नाना भाई ने भारत का पहला सूती मिल स्थापना किया इस दौर में भारतीय पूंजीपति से निर्मित उद्योग का विकास ज्यादा नहीं हो पाया क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारतीय श्रम पर नियंत्रण स्थापित करके केवल उन्हीं उद्योगों को प्रोत्साहित किया जो ब्रिटिश आर्थिक हितों को पूरा करते थे

                            1905 के दौर में बंग [ बंगाल] विद्यमान से जनित स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय उद्योग को सकरात्मक स्तर पर प्रभावित किया इस आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी वस्तुओं का प्रसार या प्रचार केनारा के प्रबल चेतना ने भारतीय उद्योगों को विकास के लिए एक सृजनात्मक वातावरण का निर्माण किया |                            
                                                               
                                                                                           साबुन, माचिस, रासायनिक, पदार्थ से संबंधित उद्योगों का प्रोत्साहन प्राप्त हुआ जैसे की  पी सी रॉय[ प्रफुल्ल चंद्र रॉय ]ने बंगाल में एक केमिकल स्टोर का स्थापना किया|

भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास का द्वितीय चरण



  • 1914-15 के दौर में प्रथम महा जीत की शुरुआत होने के कारण भारतीय उद्योग के दिशा एवं दशा भी प्रभावित हुआ इस दौरान ब्रिटेन से आयातित होने वाली वस्तुओं की मांग में ह्रास हुआ
  • युद्ध के कारण संचार साधनों में बाधा उत्पन्न हुआ जिससे कि भारत से निर्यात होने वाले कच्चे माल की गतिशीलता में भी ह्रास हुआ अर्थात कच्चे माल का निर्यात हतोत्साहित हुआ|
  • 1914 के दौर में प्रथम महायुद्ध के शुरूआत होने के कारण भारतीय उद्योगों के दिशा एवं दशा भी प्रभावित हुआ इस दौरान ब्रिटेन से इस दौरान बिटेन से आयातित होने वाली वस्तुओं के मांग में ह्रास हुआ| 
  • युद्ध के कारण संचार साधनों में बाधा उत्पन्न हुआ जिससे कि भारत से निर्यात होने वाले कच्चे माल की गतिशीलता में भी ह्रास हुआ, अर्थात कच्चे मालू का निर्यात हतोत्साहित हुआ| 
  • ब्रिटिश सरकार भी अपनी युद्ध जनित आर्थिक आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए भारतीय उद्योग को कुछ इस तरह संरक्षण दिया| 
  • इस दौर में भारतीय राष्ट्रवाद भी मजबूती के साथ उभर रहा था और इसकी भी दबाव ब्रिटिश सरकार के ऊपर पड़ रहा था जिससे कि भारतीय उद्योग के प्रति उसका प्रतिक्रियावादी नीति में थोड़ा कमी आया| 
  • 1916 में हॉलैंड के नेतृत्व में प्रथम औद्योगिक आयोग गठन किया गया और इस आयोग ने भी ब्रिटिश सरकार को भारतीय उद्योग को संरक्षण देने का परामर्श दिया इसी क्रम में 1921 में रॉयल कमीशन का स्थापना किया गया| 
  • जिसका नेतृत्व इब्राहिम रहीम तुल्लाह ने किया इसी आयोग के सिफारिश पर ब्रिटिश सरकार ने भारतीय उद्योग को संरक्षण देने के संदर्भ में विभेदात्मक आरक्षण की नीति लागू की जिसके अंतर्गत यह प्रधान बनाया गया कि ब्रिटिश सरकार केवल उन्हीं उद्योगों को अपना संरक्षण प्रदान करेगी जो ब्रिटिश सरकार के प्रारंभिक संरक्षण प्राप्त करने के बाद भविष्य में अपने पैरों पर खड़ा रह सकने में सक्षम रह सके और इसी तरह वस्त्र उद्योग को संरक्षण प्रदान किया गया एवं माचिस उद्योग को भी जबकि भारत में वास्तविक औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत उद्योग लौह इस्पात सीमेंट इत्यादि को कोई संरक्षण नहीं दिया था| 
  • दूसरे शब्दों में यह विभेदात्मक संरक्षण की नीति साम्राज्यवादी सरकार के ही आर्थिक हितों का पोषक थी| 
  • द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ होने के समय पुनः भारतीय उद्योगों को युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण जैसे यातायात का बाधित हो जाना पर्याप्त प्रोत्साहन प्राप्त हुआ, संक्षेप में औपनिवेशिक सरकार के अधीन भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास अपने नैसर्गिक गति से नहीं हो पाया|

आधुनिक उद्योगों के पूर्ण विकास क्यों नहीं 


  • ब्रिटिश सरकार द्वारा निरंतर धन का निष्कासन अतः  पूंजी का संचयन नहीं अतः  अर्थात धन का निवेश नहीं| 
  • सरकार साम्राज्यवादी अतः भारतीय उद्योगों के प्रति अरुचिकर एवं असंवेदनशील 
  • भारतीय बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र में ब्रिटिश पूंजीपतियों का एकाधिकार और इसलिए इन दोनों क्षेत्रों भारत में आधुनिक उद्योगों के विकास के लिए प्रयाप्त सहयोग समर्थन प्राप्त नहीं हो पाया| 
  • ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण माल भाड़ा नीति 
  • भारतीय उद्योगों का किसी विशेष व्यक्ति एवं क्षेत्रों में सीमित होना जिसके कारण औद्योगिक विकास के स्तर पर क्षेत्रीय असंतुलन की समस्याएं उभर कर आए| 
  • भारत में तकनीकी विकास का अभाव जैसे ब्रिटिश सरकार भारत में रेलवे का निर्माण तो कर रही थी लेकिन इसके लिए इंजीनियर ब्रिटेन से मंगाए जाते थे, जबकि यदि कोई राष्ट्रीय सरकार होती तो भारत में ही तकनीकी विकास के लिए अंग्रेजी एवं मेडिकल कॉलेजों की स्थापना करती लेकिन सरकार का स्वरूप समाजवादी था जिसका केंद्रीय उद्देश्य होता है शोषण करना 


इतिहासिक विवाद 




  • ब्रिटिश इतिहासकारों का कहना है, कि भारत ब्रिटिश पूंजीवादी व्यवस्था से कोई फायदा नहीं उठाया| 
  • भारत में औद्योगिक क्रांति के लिए एक उपयुक्त सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश का अभाव था | 

   
     इन विचारों के समानांतर यदि हम औपनिवेशिक सरकार की आर्थिक नीतियों पर दृष्टिपात करते हैं तो निम्न बिंदु उभर कर आते हैं 
ब्रिटिश सरकार का स्वरूप साम्राज्यवादी था
जिसका केंद्रीय उद्देश्य था भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का नाश करना ताकि ब्रिटिश उद्योग हेतु कच्चा माल और बाजार का प्राप्त हो सके |
ब्रिटिश सरकार जहां तक ब्रिटिश पूंजी का संबंध है तो वह पूंजीवाद एडम स्मिथ के पूंजीवाद का पूंजीवाद का भ्रष्ट संस्करण था ,जो कि ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण राजस्व की नीति कृषि का दबावपूर्ण वाणिज्य कारण तथा धन के निष्कासन से प्रतिबिंबित होती है संक्षेप में भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन कोई इतिहासिक विरासत एवं दैवीय संग योग न होकर ब्रिटिश सरकार की औपनिवेशिक नीतियों का प्रतिफल था जिसके अंतर्गत केवल "अल्प विकास का ही विकास हुआ"|


इनसे जुड़े कुछ प्रश्न 

ब्रिटिश काल में भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन कोई दैवीय संयोग या इतिहासिक घटना ना होकर , ब्रिटिश कंपनी का नीति का प्रतिफल था.. 

किन परिस्थितियों में ब्रिटिश सरकार की असहयोग के बावजूद भारत में औद्योगिक विकास की प्रक्रिया शुरुआत हो गई


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